श्री कृष्णा जन्माष्टमी संतान प्राप्ति की कामना हेतु प्रयोग के लिए एक अद्भुत अवसर है| श्रवण पूर्णिमा के बाद कृष्णा पक्ष अष्टमी दिन मानते है श्री कृष्णा जन्माष्टमी पर्व. यह पर्व उन लोगों के लिए विशेष मुहूर्त का दिन भी है, जो संतान की अभिलाषा रखते है और इस हेतु कोई साधना या प्रयोग या पूजा करना चाहते है|
यह दिन न केवल उन व्यक्तियों के लिए जिन्हे संतान प्राप्ति में कठिनाई हो रही है, विलम्ब हो रहा है अथवा चिकित्सकीय आदि प्रयासों के बावजूद गोद सूनी है और जिन लोगों के लिए भी है, जो संतान प्राप्ति की योजना बना रहे है|
यह साधना संतान गोपाल मंत्र स्तोत्र प्रयोग के रूप में मशहूर है|
सर्व प्रथम एक चौकी पर पीला रेशमी वस्त्र बिछाकर उस पर मध्य में अक्षतों से अष्टदल कमल (अष्टदल पद्मम) का निर्माण करें और उसके मध्य में भगवन श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें| श्री गणेश आदि का संक्षिप्त पूजन करने के बाद श्री कृष्णा का यथाविधि पूजन करें| एक गर्भगौरी रुद्राक्ष लेकर उसका भी श्रीकृष्ण के साथ ही पूजन करें| उसके बाद सन्तानगोपाल मन्त्र का जप आरम्भ करने के लिए दाहिने हाथ में जल लेकर निम्नलिखित श्लोकों को पढ़कर विनियोग करें|
अस्य श्रीसंतानगोपाल-मंत्रस्य श्री नारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीकृष्णो देवता, ग्लौं बीजं, नमः शक्तिः, पुत्रार्थे जापे विनियोगः |
ऐसा कहते हुए विनियोग के जल जो चौकी के समीप एक खाली पात्र में छोड़ दे|
अब निम्नलिखित विधि से हृदयादि अंगन्यास करें:
निम्नलिखित श्लोक उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा एवं अनामिका अँगुलियों से (पांचो अँगुलियों से) ह्रदय का स्पर्श करें:
“देवकीसुत गोविन्द” हृदयाय नमः|
निम्नलिखित श्लोक उच्चारण करते हुए पांचो अंगुलियों से ललाट का स्पर्श करें|
“वासुदेवा जगत्पते” शिरसे स्वाहाः|
निम्नलिखित श्लोक उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ के अंगूठे से शिखा स्थान का स्पर्श करें –
“देहि मे तनयं कृष्णा” शिखायै वषट|
निम्नलिखित श्लोक उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ के पांचो उँगलियों से बायीं भुजा का और बाये हाथ की पांचो उँगलियों से दायीं भुजा का स्पर्श करें|
“त्वामहं शरणम गतः” कवचाय हुंम|
निम्नलिखित श्लोक उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ को सिर के बायीं ओर से आरम्भ करते हुए चरों ओर घुमाकर बायें हाथ की हथेली पर तर्जनी और माध्यम अँगुलियों से ताली बजाएं :
“ॐ नमः” अस्त्राय फट|
हृदयादिन्यास करने के बाद हाथ मे पुष्प लेकर भगवन श्रीकृष्ण का निम्नलिखित रूप से ध्यान करें :
वैकुण्ठादागतं कृष्णं रथस्थं करुणा-निधिम |
किरीटी-सारथिं पुत्रमानयंतं परात्परं ||
आदाय तं जलस्थं च गुरवे वैदिकाया च |
अर्पयन्तं महा-भागं ध्यायेत पुत्रार्थमाच्युतम ||
पार्थसारथि अच्युत भगवान् श्रीकृष्ण करुणा के सागर है| वे जल मे डूबे हुए गुरु-पुत्र को लेकर आ रहे है| वे वैकुण्ठ से अभी अभी पधारे है और रथ पर विराजमान है| अपने वैदिक गुरु सांदीपनि महर्षि को उनका पुत्र अर्पित कर रहे है| ऐसे भगवान् अच्युत का मैं पुत्र की कामना हेतु ध्यान करता हूँ|
अब हाथ मे लिए हुए पुष्प को भगवान् श्रीकृष्ण के समक्ष छोड़ दे, तदुपरांत पुत्रजीवा की माला से निम्नलिखित सन्तानगोपाल मंत्र का जप आरम्भ करें|
“ॐ श्रीम ह्रीं क्लीम ग्लौं देवकी-सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते| देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ||”
यह मंत्र का कुल तीन लाख जप करने का विधान है, परंतु आप आपके सामर्थ्य के अनुसार हर दिन एक या अधिक माला जप कर सकते है| भगवान वासुदेव कृपालु एवं करुणासागर है, आप पर अवश्य कृपा करेंगे|
जप करने के बाद सन्तानगोपाल स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करना चाहिए| इस स्तोत्ररत्न जप करने से न केवल उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है, धन, संपत्ति, ऐश्वर्य एवं राजसम्मान भी प्राप्त होता है|
स्तोत्र का पाठ करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण को पुष्पांजलि अर्पित करें और अपनी कामना की पुनः प्रार्थना करें| अंत मे क्षमाप्रार्थना करें :
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरः |
यत्पूजितं मयादेव, परिपूर्णं तदस्तु मे ||
आवाहनं न जानामि विसर्जनं|
पूजाम चैवं न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ||
यदक्षरं पदभ्रष्टं मन्त्रहीनं च यद् भवेत |
तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीदा परमेश्वरः ||
इसे संतान या पुत्रकामनार्थी पति-पत्नी दोनों को एकसाथ करना चाहिए| पत्नी को पूजा मे रखे गर्भगौरी रुद्राक्ष को अपने गले मे धारण कर लेना चाहिए| जन्माष्टमी के बाद भी नित्य उक्त प्रक्रिया को संपन्न करना चाहिए|