प्राचीन समय की बात है| किसी स्त्री के सात पुत्रों का भरा-पूरा परिवार था| कार्तिक मास मे दीपावली से पूर्व वह अपने मकान की लिपाई पुताई के लिए मिट्टी लाने जंगल मे गई| स्त्री एक जगह से मिट्टी खोदने लगी| वहाँ सेई की मांद थी, अचानक उसकी कुदालि सेई के बच्चे को लग गई और वह तुरंत मर गया | यह देख स्त्री दया और करुणा से भर गई| किंतु अब क्या हो सकता था, वह पश्चाताप करती हुई मिट्टी लेकर घर चली गई| कुछ दिनों बाद उसका बड़ा लड़का मर गया, फिर दूसरा लड़का भी, इसी तरह जल्दी ही उसके सातों लड़के चल बसे स्त्री बहुत दुखी रहने लगी| एक दिन वह रोती हुई पास-पड़ोस की बड़ी – बूढ़ियों के पास गई और बोली ” मैंने जान बूझकर तो कभी कोई पाप नहीं किया | हाँ, एक बार मिट्टी खोदते हुए अनजाने में सेई के बच्चे को कुदाली लग गई थी| तब से साल भर भी पूरा नहीं हुआ, मेरे सातो पुत्र मर गएँ ”उन स्त्रियों ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा तुमने लोगों के सामने अपना अपराध स्वीकार कर जो पश्च्चाताप किया है, इससे तुम्हारा आधा पाप धुल गया| अब तुम उसी अष्टमी को भगवती के पास सेई और उसके बच्चों के चित्र बनाकर उनकी पूजा करो| ईश्वर की कृपा से तुम्हारा सारा पाप धुल जायेगा और तुम्हें फिर पहले की तरह पुत्र प्राप्त होंगें ”|
उस स्त्री ने आगामी कार्तिक कृष्ण अष्टमी को व्रत किया और लगातार उसी भांति व्रत-पूजन करती रही| भगवती की कृपा से उसे फिर सात पुत्र प्राप्त हुए | तभी से इस व्रत की परम्परा चल पड़ी |
अहोई अष्टमी का व्रत कथा 2
प्राचीन समय की बात है| दतिया नामक नगर में चन्द्रभान नाम का एक साहूकार रहता था | उसकी पत्नी का नाम चन्द्रिका था | चन्द्रिका बहुत गुणवानशील, सौंदर्यपूर्ण, चरित्रवान और पतिव्रता स्त्री थी | उनके कई संताने हुईं, लेकिन वे अल्पकाल में ही चल बसीं | संतानों के इस प्रकार मर जाने से दोनों बहुत दुखी रहते थें | पति – पत्नी सोचा करते थे की मरने के बाद हमारी धन संपत्ति का वारिस कौन होगा | एक दिन धन आदि का मोह – त्याग दोनों ने जंगल में वास करने का निश्चय किया | अगले दिन घर – बार भगवान के भरोसे छोड़ के वन को चल पड़े | चलते – चलते कई दिनों बाद दोनों बदरिकाश्रम के समीप एक शीतल कुंड पर पहुंचे | कुंड के निकट अन्न – जल त्याग कर दोनों ने मरने का निश्चय किया |
इस प्रकार बैठे – बैठे उन्हें सात दिन हो गएँ | सातवें दिन आकाशवाणी हुई- ” तुम लोग अपने प्राण मत त्यागो | यह दुःख तुम्हे पूर्व जन्म के पापो के कारण हुआ है | यदि चन्द्रिका अहोई अष्टमी का व्रत रखे तो अहोई देवी प्रसन्न होंगी और वरदान देने आएँगी | तब तुम उनसे अपने पुत्रो की दीर्घायु मांगना | इसके बाद दोनों घर वापस आ गए | अष्टमी के दिन चन्द्रिका ने विधि- विधान से श्रद्धापूर्वक व्रत किया | रात्रि को पति पत्नी ने स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण की उसी समय उन्हें अहोई देवी ने दर्शन दियें और वर माँगने को कहा | तब चन्द्रिका ने वर मांगा की मेरे बच्चे कम आयु में ही देव लोक चले जाते है | उन्हें दीर्घायु होने का वरदान दे दें | अहोई देवी ने तथास्तु कहा और अंतरध्यान हो गई | कुछ दिनों के बाद चन्द्रिका को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई | जो बहुत विद्वान, प्रतापी और दीर्घायु हुआ |