नक्षत्र और शरीर के अंग, Nakshatra aur Shareer Ke Ang. किस नक्षत्र शरीर की किस अंग को प्रतिनिधित्व करती है.
वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों को भी शरीर के आधार पर वर्गीकृत किया गया है. सभी नक्षत्र शरीर के किसी ना किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते ही हैं और इन अंगों से संबंधित परेशानी भी व्यक्ति को हो जाती हैं. जो नक्षत्र जन्म कुंडली में पीड़ित
होता है उससे संबंधित बीमारी व्यक्ति को होने की संभावना बनती है अथवा जब कोई नक्षत्र गोचर में भी पीड़ित अवस्था में
चल रहा हो तब उससे संबंधित परेशानी होने की भी संभावना बनती है.
अश्विनी नक्षत्र
अश्विनी नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है. यह पहला नक्षत्र है और इसलिए यह सिर का प्रतिनिधित्व करता है. मस्तिष्क संबंधित
जितनी भी बाते हैं उन सभी को अश्विनी नक्षत्र से देखा जाता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन्हीं से संबंधित बीमारियों का सामना व्यक्ति को करना पड़ता है.
भरणी नक्षत्र
भरणी नक्षत्र दूसरे स्थान पर आने वाला नक्षत्र है और शुक्र इसके इसके अधिकार क्षेत्र में मस्तिष्क का क्षेत्र, सिर के अंदर का भाग व आँखे आती है. जन्म कुंडली या गोचर में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन्हीं अंगों से संबंधित परेशानियों का सामना
करना पड़ता है.
कृत्तिका नक्षत्र
यह तीसरा नक्षत्र है और सूर्य इसके स्वामी हैं. इस नक्षत्र के अन्तर्गत, सिर, आँखें, मस्तिष्क, चेहरा, गर्दन, कण्ठनली, टाँसिल
व निचला जबड़ा आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर आपको इससे संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है.
रोहिणी नक्षत्र
यह चौथा नक्षत्र है और इसके स्वामी चंद्रमा है. इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में चेहरा, मुख, जीभ, टांसिल, गरदन, तालु,
ग्रीवा, कशेरुका, अनुमस्तिष्क आते हैं. जन्मकालीन रोहिणी नक्षत्र अथवा गोचर का यह नक्षत्र जब पीड़ित होता है तब इन
अंगो में पीड़ा का अनुभव व्यक्ति को होता है.
मृगशिरा नक्षत्र
यह नक्षत्र पांचवें स्थान पर आने वाला नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह मंगल है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में ठोढ़ी,
गाल, स्वरयंत्र, तालु, रक्त वाहिनियाँ, टांसिल, ग्रीवा की नसें आती हैं. तीसरे व चौथे चरण में गला आता है और गले की आवाज
आती है. बाजु व कंधे आते हैं, कान आता है. ऊपरी पसलियाँ आती हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित समस्या से जूझना पड़ता है.
आर्द्रा नक्षत्र
यह छठे स्थान पर आने वाला नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह राहु है. इस नक्षत्र के अधिकार में गला आता है, बाजुएँ आती है
और कंधे आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है.
पुनर्वसु नक्षत्र
यह सातवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बृहस्पति है. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे भाग के अधिकार में कान, गला व
कंधे की हड्डियाँ आती हैं. पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में फेफड़े, श्वसन प्रणाली, छाती, पेट, पेट के बीच का भाग, पेनक्रियाज, जिगर तथा वक्ष आता है. जब यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इस नक्षत्र से संबंधित भागों में बीमारी होने की संभावाना बनती है.
पुष्य नक्षत्र
यह भचक्र का आठवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी शनि है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत फेफ़ड़े, पेट तथा पसलियाँ आती हैं. अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इससे संबंधित शरीर के अंग में पीड़ा पहुंचती है.
आश्लेषा नक्षत्र
यह नौवां नक्षत्र है और इसका स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत फेफड़े, इसोफेगेस, जिगर, पेट का मध्य भाग, पेनक्रियाज
आता है. अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से जुड़ी परेशानियाँ व्यक्ति को होती हैं.
मघा नक्षत्र
यह भचक्र का दसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह केतु है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत पीठ, दिल, रीढ़ की हड्डी, स्पलीन,
महाधमनी, मेरुदंड का पृष्ठीय भाग आते हैं. जब भी यह नक्षत्र पीड़ित होगा तब व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से
होकर गुजरना पड़ेगा.
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र
यह ग्यारहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह शुक्र है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत मेरुदंड व दिल आता है और जब भी यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन दोनो से संबंधित कोई शारीरिक समस्या हो सकती है.
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र
यह बारहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी सूर्य है. इस नक्षत्र के पहले चरण में मेरुदंड आता है. दूसरे, तीसरे व चौथे चरण में आंते आती है, अंतड़ियाँ आती हैं और इसका निचला भाग आता है. जन्म कुंडली में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर स्वास्थ्य संबंधी
समस्याओ का सामना करना पड़ सकता है.
हस्त नक्षत्र
यह तेरहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी चंद्रमा है. इसके अधिकार में आंते, अंतड़ियाँ, अंत:स्त्राव ग्रंथियाँ, इंजाइम्स आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों में पीड़ा होने की संभावना बनती है.
चित्रा नक्षत्र
यह भचक्र का चौदहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी मंगल ग्रह है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में उदर का निचला भाग आता है, तीसरे व चौथे चरण में गुरदे, कटि क्षेत्र, हर्निया, मेरुदंड का निचला भाग, नसों की गति आदि आती है. इस नक्षत्र के
पीड़ित होने पर इन्हीं अंगों में कष्ट होता है.
स्वाति नक्षत्र
यह भचक्र का पंद्रहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह राहु है. त्वचा, गॉल ब्लैडर, गुरदे, मूत्रवाहिनी इस नक्षत्र के अधिकार
क्षेत्र में आती हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों से जुड़ी बीमारी होने की संभावना बनती है.
विशाखा नक्षत्र
यह सोलहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी बृहस्पति हैं. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे चरण में पेट का निचला हिस्सा, गॉल ब्लैडर के आसपास के अंग, गुरदा, पेनक्रियाज संबंधित ग्रंथि आती है. चौथे चरण में ब्लैडर, मूत्रमार्ग, गुदा, गुप्तांग तथा प्रौस्टेट ग्रंथि आती है.
अनुराधा नक्षत्र
यह भचक्र का सत्रहवाँ नक्षत्र है और शनि इसका स्वामी है. ब्लैडर, मलाशय, गुप्तांग, गुप्तांगों के पास की हड्डियाँ, नाक
की हड्डियाँ आदि सभी इस नक्षत्र के अंदर आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित समस्याओं से होकर गुजरना पड़ता है.
ज्येष्ठा नक्षत्र
यह भचक्र का अठारहवाँ नक्षत्र है और बुध इसका स्वामी है. गुदा, जननेन्द्रियाँ, बृहदआंत्र, अंडाशय तथा गर्भ ज्येष्ठा नक्षत्र
में आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है.
मूल नक्षत्र
यह भचक्र का उन्नीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बुध है. इस नक्षत्र के अंतर्गत कूल्हे, जांघे, गठिया की नसें, ऊर्वस्थि,
श्रांणिफलक आदि अंग आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से जुड़े रोग हो सकते हैं.
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र
यह भचक्र का बीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह शुक्र है. इसके अन्तर्गत कूल्हे, जांघे, नसें, श्रोणीय रक्त ग्रंथियाँ, मेरुदंड का सेक्रमी क्षेत्र आदि अंग आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगो से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है.
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र
यह इक्कीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह सूर्य है. इस नक्षत्र के पहले चरण में जांघे आती हैं, ऊर्वस्थि रक्त वाहिनियाँ
आती हैं. इस नक्षत्र के दूसरे, तीसरे व चौथे चरण में घुटने व त्वचा आती है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है.
श्रवण नक्षत्र
यह भचक्र का बाईसवाँ नक्षत्र है और चंद्रमा इसका स्वामी है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत घुटने, लसीका वाहिनियाँ तथा त्वचा
आती है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है.
धनिष्ठा नक्षत्र
यह भचक्र का तेईसवाँ नक्षत्र है और मंगल इसका स्वामी है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में घुटने की ऊपर की हड्डी आती है जो टोपी के समान दिखती है. तीसरे व चतुर्थ चरण में टखने, टखने और घुटनों के बीच का भाग आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों में परेशानी का अनुभव होता है.
शतभिषा नक्षत्र
यह भचक्र का चौबीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी राहु है. घुटनों व टखनों के बीच का भाग, पैर की नलियों की मांस
पेशियाँ इस नक्षत्र के अन्तर्गत आती हैं. जब यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है.
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र
यह भचक्र का पच्चीसवाँ नक्षत्र है और बृहस्पति इसका स्वामी है. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे चरण में टखने आते हैं. चतुर्थ चरण में पंजे व पांव की अंगुलियाँ आती है. जब भी यह नक्षत्र पीड़ित होगा तब इन अंगों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र
यह भचक्र का छब्बीसवाँ नक्षत्र है और शनि इसके स्वामी है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत पैर के पंजे आते हैं. जन्म कुंडली में अथवा गोचर में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को पंजों से संबंधित परेशानी से गुजरना पड़ सकता है.
रेवती नक्षत्र
यह भचक्र का सत्ताईसवाँ व अंतिम नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बुध है. इस नक्षत्र के अधिकार में पंजे व पैर की अंगुलियाँ आती हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से जुड़ी बीमारी हो सकती है.