हरछठ पूजा ( हलषष्ठी) यह त्यौहार भादों कृष्ण पक्ष की छठ को मनाया जाता है। इसी दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था।
यह व्रत केवल पुत्रवती महिलाएं करती हैं।
इस व्रत में पेड़ों के फल बिना बोया अनाज आदि खाने का विधान है।केवल पड़िया (भैंस का बच्चा ) वाली भैंस का दूध खाया जा सकता है।
पूजन का विधान
यह पूजन सभी पुत्रवती महिलाएं (सौभाग्यवती और विधवा ) करती हैं। यह व्रत पुत्रों की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं प्रति पुत्र के हिसाब से छह छोटे मिटटी या चीनी के वर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरतीं हैं। जारी (छोटी कांटेदार झाड़ी) की एक शाखा ,पलाश की एक शाखा और नारी (एक प्रकार की लता ) की एक शाखा को भूमि या किसी मिटटी भरे गमले में गाड़ कर पूजन किया जाता है। महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुवा (सूखे फूल) को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करतीं हैं।