रचन: मोहम्मद् इबाल्
परबत् वो सब् से ऊंछा हम्साया आस्मान् का
वो सन्तरी हमारा ! वो पास्बा हमारा॥
गोदिमे खेल्तीहै इस्की हजारो नदिया
गुल्षन् है जिन्के दम्से रष्के जिना हमारा॥
मज् – हब् नही सिखाता आपस्मे बैर् रख्ना
हिन्दी है हम् वतन् है हिन्दुस्तान् हमारा॥